10 September, 2012


शिव पूजन की विधि





 संक्षिप्त किन्तु पर्याप्त शिव पूजन की विधि निम्न प्रकार पूर्ण की जा सकती है।

 किसी भी तिथि या दिन को विशेषतः सोमवार को प्रातःकाल उठकर शौच स्नानादि से निवृत्त होकर त्रिदल वाले सुन्दर, साफ, बिना कटे-फटे कोमल बिल्व पत्र पाँच, सात या नौ आदि की संख्या में लें। अक्षत अर्थात बिना टूटे-फूटे कुछ चावल के दाने लें।

- सुन्दर साफ लोटे या किसी सुंदर पात्र में जल यदि संभव हो सके तो गंगा जल लें। तत्पश्चात अपनी सामर्थ्य के अनुसार गंध, चन्दन, धूप, अगरबत्ती आदि लें।

यह सब सामान एकत्र करके किसी भी शिव मंदिर जाएँ। यदि नजदीक कोई शिवालय उपलब्ध न हो तो बिल्व वृक्ष के पास जाएँ। या फिर पीपल के वृक्ष के पास जाएँ। समस्त सामग्री को किसी स्वच्छ पात्र में रखें।

- यदि कोई समुचित पात्र उपलब्ध न हो तो भूमि को ही लीप-पोतकर स्वच्छ कर लें और निम्न मंत्र पढ़ते हुए समस्त सामग्री जमीन पर रख दें-

मंत्र- 'अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशा।
सर्वेषामवरोधेन ब्रह्मकर्म समारभे।
अपसर्पन्तु ते भूताः ये भूताः भूमिसंस्थिताः।
ये भूता विनकर्तारस्ते नष्टन्तु शिवाज्ञया।'

तत्पश्चात यदि शिवलिंग हो तो (यदि शिवलिंग उपलब्ध न हो तो पीपल या बिल्व अर्थात बेल के वृक्ष को ही) उसे स्वच्छ जल से धोएँ और निम्न मंत्र पढ़ते जाएँ-

मंत्र- 'गंगा सिन्धुश्य कावेरी यमुना च सरस्वती। रेवा महानदी गोदा अस्मिन्‌ जले सन्निधौ कुरु।'

तत्पश्चात भगवान (वृक्ष) के ऊपर अक्षत चढ़ाएँ और यह मंत्र पढ़ें-

मंत्र- 'क्क अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया ऽअधूड्ढत। अस्तोड्ढत स्वभानवोव्विप्प्रान विष्ट्ठयामती योजान्विन्द्रते हरी।'

इसके बाद यदि पुष्प हो तो भगवान को फूल अर्पित करें और यह मंत्र पढ़ते जाएँ-

मंत्र- 'क्क ओषधीः प्रतिमोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अष्वाऽइव सजित्वरीर्व्वीरुधः पारयिष्णवः।'

पुनः हल्दी-चन्दनादि जो भी उपलब्ध हो उसका शिवलिंग पर लेप लगाएँ और निम्न मंत्र पढ़ते जाएँ-

मंत्र- 'क्क भूः भुर्वः स्वः क्क द्द्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम्‌ पुष्टि वर्धनम्‌ उर्व्वारुकमिव बन्धनान्‌ मृत्योर्मुक्षीय मामुतः।'

तत्पश्चात भगवान को धूप अर्पण करें तथा भगवान को बिल्वपत्र अर्पण करें और यह मंत्र पढें-

मंत्र- 'काशीवास निवासिनाम्‌ कालभैरव पूजनम्‌। कोटिकन्या महादानम्‌ एक बिल्वं समर्पणम्‌। दर्षनं बिल्वपत्रस्य स्पर्षनं पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहार एकबिल्वं शिवार्पणम। त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्‌। त्रिजन्मपाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम।'

तत्पश्चात जल या गंगा जल भगवान को चढ़ाएँ और यह मंत्र पढ़ें-
मंत्र- 'गंगोत्तरी वेग बलात्‌ समुद्धृतं सुवर्ण पात्रेण हिमांषु शीतलं सुनिर्मलाम्भो ह्यमृतोपमं जलं गृहाण काशीपति भक्त वत्सल।'

और सबसे अन्त में क्षमा याचना करें। मंत्र इस प्रकार है-

अपराधो सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निषं मया, दासोऽयमिति माम्‌ मत्वा क्षमस्व परमेश्वर। आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर, यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे'

किन्तु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि जो मंत्र नहीं जानता है वह पूजा नहीं कर सकता। बिना मंत्र पढ़े भी यह समस्त सामग्री भगवान को अर्पित की जा सकती है। केवल विश्वास एवं श्रद्धा होनी चाहिए। भगवान भोलेनाथ ने स्वयं कहा है कि-

'न मे प्रियष्चतुर्वेदी मद्भभक्तः ष्वपचोऽपि यः। तस्मै देयं ततो ग्राह्यं स च पूज्यो यथा ह्यहम्‌।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तस्याहं न प्रणस्यामि स च मे न प्रणस्यति।'

अर्थात जो भक्तिभाव से बिना किसी वेद मंत्र के उच्चारण किए मात्र पत्र, पुष्प, फल अथवा जल समर्पित करता है उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता हूँ और वह भी मेरी दृष्टि से कभी ओझल नहीं होता है।

श्रावण मास की नवमी तिथि की महत्ता प्रतिपादित करते हुए शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में लिखा है कि कर्क संक्रान्ति से युक्त श्रावण मास की नवमी तिथि को मृगशिरा नक्षत्र के योग में अम्बिका का पूजन करें। वे सम्पूर्ण मनोवांछित भोगों और फलों को देने वाली हैं। ऐश्वर्य की इच्छा रखने वाले पुरुष को उस दिन अवश्य उनकी पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार की विशेष पूजा से जन्म-जन्मांतर के पापों का सर्वनाश हो जाता है।

इस प्रकार श्रावण मास में दानी बाबा भोलेनाथ की पूजा का सद्यः फल प्राप्त किया जा सकता है। विशेष शनिकृत पीड़ा चाहे वह साढ़ेसाती हो या शनि की दशान्तर्दशा हो, शनिजन्य चाहे कोई भी पीड़ा क्यों न हो? हर तरह के कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।

मुद्रा चिकित्सा रहस्य एवं प्रयोग


सम्पूर्ण प्रकृति और हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है| मानव शरीर लघु ब्रह्माण्ड स्वरूप है| सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतीक यह मानव-शरीर भी ब्रह्माण्ड के समान ही पांच तत्वों (अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, जल) के योग से बना है| मुद्रा विज्ञान का आधारभूत सिद्धांत यह है कि शरीर में इन पंच तत्वों में असंतुलन से रोगोत्पत्ति होती है तथा पंच तत्वों में समता व सन्तुलन होने से हम स्वस्थ रहते हैं| स्वस्थ शब्द को यहां शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संदर्भों में स्वयं में अपनी प्रकृति में स्थित रहने से लेना चाहिए|

मानव- शरीर प्रकृति की सर्वोत्तम रचना है और हाथ सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है| हाथों में से एक विशेष प्रकार की प्राण-ऊर्जा या शक्ति विद्युत तरंगें/जीवनी शक्ति (र्ईीर) निरंतर निकलती रहती है| विभिन्न प्रकार की रहस्यमयी चिकित्साओं में हाथों के संस्पर्श मात्र से नीरोगी बनाने के पीछे यही ऊर्जा छिपी है|

भारतीय मनीषियों के अनुसार, मानव-हस्त की पांचों उंगलियां अलग-अलग पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं और प्रत्येक उंगली का संबंध एक तत्व विशेष से है| आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि प्रत्येक उंगली के सिरे से अलग-अलग प्रकार की ऊर्जा तरंगें (इलेक्ट्रो मैगनेटिक वेव्स) निकलती रहती है| प्राचीन भारतीय ऋषियों की अद्भुत खोज मुद्रा-विज्ञान के अनुसार पंच तत्वों की प्रतीक उंगलियों को परस्पर मिलाने, दबाने, मरोड़ने या विशेष प्रकार की आकृति बनाने से विभिन्न प्रकार के तत्वों में परिवर्तन, अभिव्यक्ति, विघटन एवं प्रत्यावर्तन होने लगता है| दूसरे शब्दों में, उंगलियों की सहायता से (बनाई जानेवाली विभिन्न मुद्राओं द्वारा) इन पंच तत्वों को इच्छानुसार घटाया-बढ़ाया जा सकता है| कौन-सी उंगली किस तत्व का प्रतिनिधित्व करती है, चित्र से यह बात स्पष्ट हो जाती है|

अंगूठा- अग्नि
तर्जनी (अंगूठे के पास वाली उंगली) = वायु
मध्यमा (सबसे बड़ी अंगुली) = आकाश
अनामिका (चौथी उंगली) = पृथ्वी
कनिष्ठिका (सबसे छोटी उंगली) = जल

16 August, 2012

Vaman (Dhouti)

Introduction

It is another easy method of dhouti. The washing up of the entire track starting from the mouth to the digestive path at the beginning of the small intestines, that is mouth, esophagus, stomach etc are included in this process. One can wash one's mouth, but in the daily routine one cannot wash the esophagus or the stomach. The impurities residing there are carried along with the food particles and are mixed in some proportion with the blood. This has adverse effects on the body. In the case of some patients, the stomach wash is effected by introducing rubber tube into the stomach. This process is done in Yoga without any external instruments, only with the physical movements of the internal organs in the body. This process of stomach wash is done with the help of dand (catheter), water or cloth. We will consider the process done with the help of water.


Process

Heat pure drinking water till it achieves the body temperature and put a pinch of salt in it
Initially, the proportion of salt can be kept a little high.
Start drinking this water sitting at one place. Generally, nothing is felt till a liter of water is consumed.
Keep on drinking the water. Afterwards, the weight of the water is felt into the stomach, which gradually causes
strain.
After intake of 1.5 to 2 liters of water, there is a nauseating feeling. Keep on drinking.
While drinking the water (salted and heated as described herein above), it should be drunk sip by sip consuming it from a glass.
Ultimately, there is a feeling that no further quantity can be consumed and there is an intense feeling to vomit.
Try to consume another glass by keeping the feeling in check with mental efforts.
Then stand up with a distance of 1 to 1.5 ft in the legs and bend down slightly.
Insert the fore or index finger, middle finger and the small finger of the right hand into the mouth and press a little at the end of the tongue.
This aggravates the feeling to vomit.
The water in the stomach will come out in gushes.
Try to bring out the entire quantity by inserting fingers into the throat.
When the entire quantity of water comes out, the nausea stops and the feeling to vomit vanishes.
Wash the mouth and perform shavasan.
Shavasan should be performed for 10 to 15 minutes as per the need and then one can resume the normal routine.
After one hour, a drink may be allowed.


Duration

The feeling to vomit becomes intense within 10 to 15 minutes of the start of drinking the water. The actual process of vomiting lasts for only 2 to 3 minutes. That means the entire process of vamandhouti lasts for 15 to 20 minutes. However, shavasan must be performed as per the need for at least 10 to 15 minutes. This process is not to be reiterated. It is a one time process at a given time. Also, it is not to be performed daily. This is to be performed as per the need under proper guidance. It is said in the texts that the process is to be performed after having food. However, for learning the process, it should be performed early in the morning, on empty stomach. After learning the process thoroughly, if it is to be performed with specific purpose in mind, it may be performed after having food.


Physical Effects

In this process, the stomach is filled with the water and then the same water is turned out from the mouth. Hence, the stomach and the esophagus are washed clean from inside. The impurities are thrown out. In the general digestion process, when the food and the water are consumed, they travel from the stomach to the small intestines and then absorbed into the blood. That means, poisonous substances when swallowed through the mouth or if generated in the stomach due to some internal problems, travel with the food to the small intestines and are absorbed into the blood in at least certain proportion. This process helps to bring out such poisonous materials. Also, the water drunk in the process includes salt. The osmotic pressure in the stomach is increased due to such water and instead of such water getting absorbed, the water in the blood gets absorbed into the stomach. Hence, the poisonous substances on the inner wall or lining of the stomach are brought into the stomach and thrown out along with the water.

Due to some sort of problem, certain poisonous materials or deformed juices are generated in the stomach after consumption of food. This hinders proper digestion. If this process is performed immediately after having food, such poisonous materials are thrown out of the body and they do not get mixed into the blood. This vamandhouti process is useful for patients suffering from acidity.


Precaution

This process cannot be learnt from reading it in a book. It should be learnt under the guidance of the expert and then may be performed independently when learnt properly. Also, like asanas and pranayama, this process should not be performed daily. It should be performed according to the need under the expert guidance.

People suffering from heart trouble, blood pressure - high or low, diseases of the nervous system, or trouble from ulcers, should not perform the process. It should be done under expert advice and to the extent prescribed by them.

While performing the process, the same amount of water as consumed should be thrown out. However, if the exact quantity is not thrown out, there is no need to get scared. The water then travels across the digestive track and is thrown out of the body by way of diarrhea. It does not cause any trouble to the body.

It is necessary to perform shavasan for 10 to 15 minutes. Also, if any food is to be consumed, it may be taken after 1.5 to 2 hours after the process.


References in the ancient texts

The first chapter of the Gherandsamhita states that :

Bhojanante pibadwari chakantham puritam sudhih |
Urdhwa drishtim kshanam krutva tatjalam vamayetpunah |
Nityamabhyasyogen kaphapittam niwarayet || G S 1-39

Meaning - 

Drink plenty of water after having food and vomit out the entire water after glancing upwards for a minute. The vamandhouti eliminates kapha and pitta.

Here, the process is to be performed after having food. However, it is not expected that it is to be performed daily. Also, it states that the process eliminates kapha-pitta. That means when kapha-pitta are generated in excess and cause some trouble to the body, then this process should be used to get rid of them. When the kapha - pitta are in control, then the process need not be performed.