1. कामाख्या का तांत्रिक सम्मलेन
कामाख्या तांत्रिक सम्मलेन (तांत्रिक सिद्धियाँ) कितना अद्भुत था कामाख्या का तांत्रिक सम्मलेन! इस सम्मलेन में माँ कपाली भैरवी, पिशाच सिद्धियों के स्वामी, कंकाल भैरवी, त्रिजटा अघोरी, बाबा भैरवनाथ, पगला बाबा, आदि विश्व विख्यात तांत्रिक आये हुए थे! सभापति कौन बनेगा, इस बात पर सभी एकमत नहीं हो पा रहे थे, कि तभी त्रिजटा अघोरी ने अत्यंत मेघ गर्जना के साथ परम पूज्य गुरुदेव निखिलेश्वरानंदजी महाराज (सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी) का नाम प्रस्तावित किया और घोषणा की: “यही एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो साधना के प्रत्येक क्षेत्र, चाहे वह तंत्र का हो, या मंत्र का हो, कृत्या साधना हो, चाहे भैरव साधना हो, या किसी भी तरह की कोई भी साधना हो, पूर्णतः सिद्धहस्त हैं!” भुर्भुआ बाबा ने भी इस बात का अनुमोदन किया! जब सबने पूज्य गुरुदेव को देखा, तो उन्हें सहज में विश्वास नहीं हुआ, कि धोती-कुरता पहना हुआ यह व्यक्ति क्या वास्तव में इतने अधिक शक्तियों का स्वामी हैं. इसी भ्रमवश कपाली बाबा ने गुरुदेव को चुनौती दे दी! कपाली बाबा ने कहा – “तुम्हारा अस्तित्व मेरे एक छोटे से प्रयोग से ही समाप्त हो जायेगा, अतः पहले तुम ही मेरे पर वार करके अपनी शक्ति का प्रदर्शन करो!” गुरुदेव ने अत्यंत विनम्र भाव से उसकी चुनौती को स्वीकार करते हुए कहा – “आपको अपनी कृत्याओं पर भरोसा करना चाहिए, किन्तु यह भी ध्यान रखना चाहिए, कि दूसरा व्यक्ति भी कृत्याओं से संपन्न हो सकता हैं!.” मुस्कुराते हुए गुरुदेव ने कहा – “मैं आपका सम्मान करते हुए आपको सावधान करता हूँ कि आपके प्रयोग से मेरा कुछ नहीं बिगडेगा. यदि आप को अहं हैं कि आप मुझे समाप्त कर देंगे! तो पहले आप ही अपने सबसे शक्तिशाली या संहारक अस्त्र का प्रयोग कर सकते हैं!” इतना सुनते ही कपाली बाबा ने अत्यंत तीक्ष्ण “संहारिणी कृत्या” का आवाहन करके सरसों के दानों को गुरुदेव की तरफ फेंकते हुए कहा – “लें! अपनी करनी का फल भुगत!” संहारिणी कृत्या का प्रहार यानि विशाल पर्वत का नमो-निशान समाप्त हो जाये! अत्यंत उत्सुक और भयभीत नजरों से अन्य साधक मंत्र की ओर देख रहे थे, किन्तु आश्चर्य की पूज्य गुरुदेव अपने स्थान से दो-चार कदम पीछे हटकर वापिस उसी स्थान पर आकर खड़े हो गए! कपाली बाबा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा! उन्हें तो उम्मीद ही नहीं थी, कि यह साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति संहारिणी कृत्या का सामना कर सकेगा! इसके बाद कपाली बाबा ने “बावन भैरवों” का एक साथ प्रहार किया! लेकिन उनका यह प्रहार भी पूज्य गुरुदेव का बाल-बांका न कर सका! कपाली भैरवी तथा अन्य तांत्रिकों ने गुरुदेव को प्रयोग करने के लिए कहा! गुरुदेव ने कपाली बाबा से कहा – “मैं एक ही प्रयोग करूँगा, यदि तुम इस प्रयोग से बच गए, तो मैं तुम्हारा शिष्यत्व स्वीकार कर लूँगा!” गुरुदेव ने दो क्षण के बाद ही अपनी मुट्ठी कपाली बाबा की तरफ करके खोल दी और इसी समय कपाली बाबा लड़खडा कर गिर पड़े, उनके मुंह से खून की धारा बह निकली! पूज्य गुरुदेव ने कहा – “यदि कपाली बाबा क्षमा मांग ले, तो मैं उन्हें दया करके जीवनदान दे सकता हूँ!” कपाली बाबा के मुंह से खून निकल रहा था! फिर भी उनमें चेतना बाकी थी. उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर क्षमा मांगी! गुरुदेव ने अत्यंत कृपा करके अपना प्रयोग वापिस लिया और वहां उपस्थित साधकों के अनुग्रह पर कपाली बाबा के सिर से दो-चार बाल उखाड कर उनको अपना शिष्यत्व प्रदान किया और तांत्रिक सम्मलेन का सभापति बनें. “मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान” आध्यात्मिक पत्रिका से. पृष्ठ नं. : 42, जुलाई 2005 नोट : यह घटना विस्तार में गुरुदेव के ग्रन्थ “तांत्रिक सिद्धियाँ” में पूर्ण रूप से दी हुयी हैं! “साथ ही कामाख्या का तांत्रिक सम्मलेन वह सम्मलेन हैं, जिसमें सम्मिलित होने हेतु हमारे देश के साथ ही समस्त विश्व (पृथ्वी) से तंत्र के उच्चकोटि के व्यक्तित्वों को आमंत्रित किया गया था! इस सम्मलेन में सम्मिलित होने के लिए यह आवश्यक था कि उसे कम से कम दो महाविद्या सिद्ध होनी ही चाहिए... और साथ ही तंत्र की उच्चकोटि की अन्य क्रियाओं आदि की जानकारी होना आवश्यक था! इसका सभापति सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी महाराज (डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी) का होना इस बात की और इंगित करता हैं, कि तंत्र में गुरुदेव के समकक्ष कोई भी व्यक्तित्व नहीं हैं!” |
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