शिव पूजन की विधि
संक्षिप्त किन्तु पर्याप्त शिव पूजन की विधि निम्न प्रकार पूर्ण की जा सकती है।
किसी भी तिथि या दिन को विशेषतः सोमवार को प्रातःकाल उठकर शौच स्नानादि से निवृत्त होकर त्रिदल वाले सुन्दर, साफ, बिना कटे-फटे कोमल बिल्व पत्र पाँच, सात या नौ आदि की संख्या में लें। अक्षत अर्थात बिना टूटे-फूटे कुछ चावल के दाने लें।
- सुन्दर साफ लोटे या किसी सुंदर पात्र में जल यदि संभव हो सके तो गंगा जल लें। तत्पश्चात अपनी सामर्थ्य के अनुसार गंध, चन्दन, धूप, अगरबत्ती आदि लें।
यह सब सामान एकत्र करके किसी भी शिव मंदिर जाएँ। यदि नजदीक कोई शिवालय उपलब्ध न हो तो बिल्व वृक्ष के पास जाएँ। या फिर पीपल के वृक्ष के पास जाएँ। समस्त सामग्री को किसी स्वच्छ पात्र में रखें।
- यदि कोई समुचित पात्र उपलब्ध न हो तो भूमि को ही लीप-पोतकर स्वच्छ कर लें और निम्न मंत्र पढ़ते हुए समस्त सामग्री जमीन पर रख दें-
मंत्र- 'अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशा।
सर्वेषामवरोधेन ब्रह्मकर्म समारभे।
अपसर्पन्तु ते भूताः ये भूताः भूमिसंस्थिताः।
ये भूता विनकर्तारस्ते नष्टन्तु शिवाज्ञया।'
तत्पश्चात यदि शिवलिंग हो तो (यदि शिवलिंग उपलब्ध न हो तो पीपल या बिल्व अर्थात बेल के वृक्ष को ही) उसे स्वच्छ जल से धोएँ और निम्न मंत्र पढ़ते जाएँ-
मंत्र- 'गंगा सिन्धुश्य कावेरी यमुना च सरस्वती। रेवा महानदी गोदा अस्मिन् जले सन्निधौ कुरु।'
तत्पश्चात भगवान (वृक्ष) के ऊपर अक्षत चढ़ाएँ और यह मंत्र पढ़ें-
मंत्र- 'क्क अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया ऽअधूड्ढत। अस्तोड्ढत स्वभानवोव्विप्प्रान विष्ट्ठयामती योजान्विन्द्रते हरी।'
इसके बाद यदि पुष्प हो तो भगवान को फूल अर्पित करें और यह मंत्र पढ़ते जाएँ-
मंत्र- 'क्क ओषधीः प्रतिमोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अष्वाऽइव सजित्वरीर्व्वीरुधः पारयिष्णवः।'
पुनः हल्दी-चन्दनादि जो भी उपलब्ध हो उसका शिवलिंग पर लेप लगाएँ और निम्न मंत्र पढ़ते जाएँ-
मंत्र- 'क्क भूः भुर्वः स्वः क्क द्द्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टि वर्धनम् उर्व्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामुतः।'
तत्पश्चात भगवान को धूप अर्पण करें तथा भगवान को बिल्वपत्र अर्पण करें और यह मंत्र पढें-
मंत्र- 'काशीवास निवासिनाम् कालभैरव पूजनम्। कोटिकन्या महादानम् एक बिल्वं समर्पणम्। दर्षनं बिल्वपत्रस्य स्पर्षनं पापनाशनम्। अघोर पाप संहार एकबिल्वं शिवार्पणम। त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्। त्रिजन्मपाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम।'
तत्पश्चात जल या गंगा जल भगवान को चढ़ाएँ और यह मंत्र पढ़ें-
मंत्र- 'गंगोत्तरी वेग बलात् समुद्धृतं सुवर्ण पात्रेण हिमांषु शीतलं सुनिर्मलाम्भो ह्यमृतोपमं जलं गृहाण काशीपति भक्त वत्सल।'
और सबसे अन्त में क्षमा याचना करें। मंत्र इस प्रकार है-
अपराधो सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निषं मया, दासोऽयमिति माम् मत्वा क्षमस्व परमेश्वर। आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर, यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे'
किन्तु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि जो मंत्र नहीं जानता है वह पूजा नहीं कर सकता। बिना मंत्र पढ़े भी यह समस्त सामग्री भगवान को अर्पित की जा सकती है। केवल विश्वास एवं श्रद्धा होनी चाहिए। भगवान भोलेनाथ ने स्वयं कहा है कि-
'न मे प्रियष्चतुर्वेदी मद्भभक्तः ष्वपचोऽपि यः। तस्मै देयं ततो ग्राह्यं स च पूज्यो यथा ह्यहम्।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तस्याहं न प्रणस्यामि स च मे न प्रणस्यति।'
अर्थात जो भक्तिभाव से बिना किसी वेद मंत्र के उच्चारण किए मात्र पत्र, पुष्प, फल अथवा जल समर्पित करता है उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता हूँ और वह भी मेरी दृष्टि से कभी ओझल नहीं होता है।
श्रावण मास की नवमी तिथि की महत्ता प्रतिपादित करते हुए शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में लिखा है कि कर्क संक्रान्ति से युक्त श्रावण मास की नवमी तिथि को मृगशिरा नक्षत्र के योग में अम्बिका का पूजन करें। वे सम्पूर्ण मनोवांछित भोगों और फलों को देने वाली हैं। ऐश्वर्य की इच्छा रखने वाले पुरुष को उस दिन अवश्य उनकी पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार की विशेष पूजा से जन्म-जन्मांतर के पापों का सर्वनाश हो जाता है।
इस प्रकार श्रावण मास में दानी बाबा भोलेनाथ की पूजा का सद्यः फल प्राप्त किया जा सकता है। विशेष शनिकृत पीड़ा चाहे वह साढ़ेसाती हो या शनि की दशान्तर्दशा हो, शनिजन्य चाहे कोई भी पीड़ा क्यों न हो? हर तरह के कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
किसी भी तिथि या दिन को विशेषतः सोमवार को प्रातःकाल उठकर शौच स्नानादि से निवृत्त होकर त्रिदल वाले सुन्दर, साफ, बिना कटे-फटे कोमल बिल्व पत्र पाँच, सात या नौ आदि की संख्या में लें। अक्षत अर्थात बिना टूटे-फूटे कुछ चावल के दाने लें।
- सुन्दर साफ लोटे या किसी सुंदर पात्र में जल यदि संभव हो सके तो गंगा जल लें। तत्पश्चात अपनी सामर्थ्य के अनुसार गंध, चन्दन, धूप, अगरबत्ती आदि लें।
यह सब सामान एकत्र करके किसी भी शिव मंदिर जाएँ। यदि नजदीक कोई शिवालय उपलब्ध न हो तो बिल्व वृक्ष के पास जाएँ। या फिर पीपल के वृक्ष के पास जाएँ। समस्त सामग्री को किसी स्वच्छ पात्र में रखें।
- यदि कोई समुचित पात्र उपलब्ध न हो तो भूमि को ही लीप-पोतकर स्वच्छ कर लें और निम्न मंत्र पढ़ते हुए समस्त सामग्री जमीन पर रख दें-
मंत्र- 'अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशा।
सर्वेषामवरोधेन ब्रह्मकर्म समारभे।
अपसर्पन्तु ते भूताः ये भूताः भूमिसंस्थिताः।
ये भूता विनकर्तारस्ते नष्टन्तु शिवाज्ञया।'
तत्पश्चात यदि शिवलिंग हो तो (यदि शिवलिंग उपलब्ध न हो तो पीपल या बिल्व अर्थात बेल के वृक्ष को ही) उसे स्वच्छ जल से धोएँ और निम्न मंत्र पढ़ते जाएँ-
मंत्र- 'गंगा सिन्धुश्य कावेरी यमुना च सरस्वती। रेवा महानदी गोदा अस्मिन् जले सन्निधौ कुरु।'
तत्पश्चात भगवान (वृक्ष) के ऊपर अक्षत चढ़ाएँ और यह मंत्र पढ़ें-
मंत्र- 'क्क अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया ऽअधूड्ढत। अस्तोड्ढत स्वभानवोव्विप्प्रान विष्ट्ठयामती योजान्विन्द्रते हरी।'
इसके बाद यदि पुष्प हो तो भगवान को फूल अर्पित करें और यह मंत्र पढ़ते जाएँ-
मंत्र- 'क्क ओषधीः प्रतिमोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अष्वाऽइव सजित्वरीर्व्वीरुधः पारयिष्णवः।'
पुनः हल्दी-चन्दनादि जो भी उपलब्ध हो उसका शिवलिंग पर लेप लगाएँ और निम्न मंत्र पढ़ते जाएँ-
मंत्र- 'क्क भूः भुर्वः स्वः क्क द्द्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टि वर्धनम् उर्व्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामुतः।'
तत्पश्चात भगवान को धूप अर्पण करें तथा भगवान को बिल्वपत्र अर्पण करें और यह मंत्र पढें-
मंत्र- 'काशीवास निवासिनाम् कालभैरव पूजनम्। कोटिकन्या महादानम् एक बिल्वं समर्पणम्। दर्षनं बिल्वपत्रस्य स्पर्षनं पापनाशनम्। अघोर पाप संहार एकबिल्वं शिवार्पणम। त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्। त्रिजन्मपाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम।'
तत्पश्चात जल या गंगा जल भगवान को चढ़ाएँ और यह मंत्र पढ़ें-
मंत्र- 'गंगोत्तरी वेग बलात् समुद्धृतं सुवर्ण पात्रेण हिमांषु शीतलं सुनिर्मलाम्भो ह्यमृतोपमं जलं गृहाण काशीपति भक्त वत्सल।'
और सबसे अन्त में क्षमा याचना करें। मंत्र इस प्रकार है-
अपराधो सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निषं मया, दासोऽयमिति माम् मत्वा क्षमस्व परमेश्वर। आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर, यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे'
किन्तु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि जो मंत्र नहीं जानता है वह पूजा नहीं कर सकता। बिना मंत्र पढ़े भी यह समस्त सामग्री भगवान को अर्पित की जा सकती है। केवल विश्वास एवं श्रद्धा होनी चाहिए। भगवान भोलेनाथ ने स्वयं कहा है कि-
'न मे प्रियष्चतुर्वेदी मद्भभक्तः ष्वपचोऽपि यः। तस्मै देयं ततो ग्राह्यं स च पूज्यो यथा ह्यहम्।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तस्याहं न प्रणस्यामि स च मे न प्रणस्यति।'
अर्थात जो भक्तिभाव से बिना किसी वेद मंत्र के उच्चारण किए मात्र पत्र, पुष्प, फल अथवा जल समर्पित करता है उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता हूँ और वह भी मेरी दृष्टि से कभी ओझल नहीं होता है।
श्रावण मास की नवमी तिथि की महत्ता प्रतिपादित करते हुए शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में लिखा है कि कर्क संक्रान्ति से युक्त श्रावण मास की नवमी तिथि को मृगशिरा नक्षत्र के योग में अम्बिका का पूजन करें। वे सम्पूर्ण मनोवांछित भोगों और फलों को देने वाली हैं। ऐश्वर्य की इच्छा रखने वाले पुरुष को उस दिन अवश्य उनकी पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार की विशेष पूजा से जन्म-जन्मांतर के पापों का सर्वनाश हो जाता है।
इस प्रकार श्रावण मास में दानी बाबा भोलेनाथ की पूजा का सद्यः फल प्राप्त किया जा सकता है। विशेष शनिकृत पीड़ा चाहे वह साढ़ेसाती हो या शनि की दशान्तर्दशा हो, शनिजन्य चाहे कोई भी पीड़ा क्यों न हो? हर तरह के कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
please visit me for exact jyotish predictions at facebook- himanshesh raj varma
ReplyDelete